
Meghdoot main Prakriti Chitran / मेघदूत में प्रकृति चित्रण
Author(s) -
महेश कुमार अलेंद्र
Publication year - 2021
Publication title -
haridra
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
ISSN - 2582-9092
DOI - 10.54903/haridra.v2i07.7767
Subject(s) - computer science
प्रकृति मानव की प्रारंभिक सहचरी रही हैं, जब से मानव ने इस भूपटल में जन्म लिया है, तभी से वह प्रकृति के साहचर्य में आया है। वह सूर्य चंद्रादि से प्रकाशित हुआ है, वृक्षों ने उसे छाया प्रदान कि है, भूमि ने उसे अन्न दिया है, झरनों ने उसे शीतल जल प्रदान किया है एवं समुद्र ने उसे रत्न दिए है, अतः मानव एवं प्रकृति का निरंतर संयोग रहा है। इसी सुन्दर प्रकृति ने उसे यदाकदा झंझावत, उत्पल-वर्षा व तिमिर से भयभीत एवं अस्थिर किया और इन सबके कारण उसने परमेश्वर का सहारा लेकर भय व कम्पन से छुटकारा पाने का प्रयास किया है, यही कारण है कि जगत के आदि ग्रंथो से ही हमें इंद्र, सूर्य, वरुण, चन्द्र, वायु, एवं पृथ्वी विषयक, गुणगान मिलते है। ऋग्वेद के ही एक मंत्र में इंद्र द्वारा पर्वतो को अचल करने, कम्पित पृथ्वी को स्थिर करने व गगन मण्डल को सँभालने का सुन्दर वर्णन मिलता है- यःपृथ्वी व्यथमानामदृढं यः घौ पर्वतान्प्रकुपितां अरम्णादः । यो अन्तरिक्ष विषमे वरीयो यो द्यामस्तभनात्स जनास इंद्रः ।। 1 प्रकृति शब्द “प्र” उपसर्ग “ कृ “ धातु में क्तिन (स्त्री) प्रत्यय करने से निष्पन्न हुआ है । इस का आशय किसी वस्तु की नैसर्गिक स्थिति माया, जड-जगत, स्वाभाविक रूप, नैसर्गिक स्वभाव, मिजाज, स्वभाव आदत, बनावट, रूप, आकृति वंश परम्परा मूल श्रोत इत्यादि से है । वैसे प्रकृति शब्दमें “ प्र “का अर्थ हुआ उत्तम और कृति का अर्थ हुआ रचना या सर्वोत्कृष्ट रचना । जिसे इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- “ प्रकृति ईश्वर (परमात्मा) की वह सर्वोत्तम रचना है, जिसके निर्माण में मानव कि कोई भूमिका नहीं है।” प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल तक भारतीय चिंतन धारा के अंतर्गत दोनों का संचालन एक ही प्रकार से होता रहा है । अतः मानव और प्रकृति के मध्य पाए जाने वाले साहचर्य की अभिव्यक्ति करना कवियों का प्रिय व मधुर विषय रहा है।