
पितृसत्तात्मक समाजः एक विमर्श
Author(s) -
डॉ. विमलेश यादव,
अंजेश देवी
Publication year - 2022
Publication title -
praxis international journal of social science and literature
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
ISSN - 2581-6675
DOI - 10.51879/pijssl/050304
Subject(s) - computer science
आज भी यह विड़ंबना है कि जब कोई महिला अपना अधिकार मांगती है तो पुरूष को उस समय उसका अहं आहत होता नजर आता है। पुरूष अपने अधिकार को स्त्री पर पूर्णतः हावी रखता है। आज जो लड़ाई है वह अधिकारों की लड़ाई है। स्त्री को अपने अधिकारों के बारे में विस्तार से और मानसिक स्तर से सोचना चाहिए एवं अपनी सोच का दायरा भी विस्तृत करना चाहिए। आज स्त्री जात के अधिकारों की संसार में शांति व सुरक्षा जैसे मुद्दे पर डिबेट् करने की आवश्यकता है। जिस आजादी की जरूरत हमें खुद है ठीक वैसी ही जरूरत दूसरों को भी होती है और खासकर उस महिला को जिसने पूरी जिंदगी अपने पति और बच्चों को अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। पूरी जिन्दगी कर्त्तव्य निभाने में लगा दी और अंत में यह भी भूल गई कि आखिर उसके कुछ अधिकार थे भी या नहीं। समय के बदलाव के साथ आज स्त्री को परिवार ने कमाने की पूरी आजादी है। लेकिन उसकी कमाई पर अधिकार परिवार वालों को होता है। वह महिला अपने द्वारा कमाई धन राशी को खर्च करने की हिम्मत नहीं रखती। अगर भूल से भी वह उस धन को खर्च कर दे तो घर में लड़ाई हो जाती हैं। लेकिन वह अपने जीने की राह से भटकती नहीं है। वह अपने अधिकार के लिए लड़ना सीख रही है।