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श्रीअरविन्द की दृश्टि में आध्यात्मिक कर्म का वैज्ञानिक निरूपण
Author(s) -
Rakesh Verma
Publication year - 2017
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v9i.124
Subject(s) - computer science
श्रीअरविन्द का जीवन एक कर्मयोगी की तरह रहा। उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज को अमूल्य निधि प्रदान की। उनका दृश्टिकोण पूर्णतः वैज्ञानिक था। श्रीअरविन्द आन्तरिक एवं बहिर्मुख दोनों तरह के कर्मों की आवष्यकता को स्वीकार करते हुए भगवत् कर्म को महत्ता देते थे। बाह्य जगत् को मनुश्य तभी जान सकता है जब वह आन्तरिक जगत् से परिचित हो और यह सत् कर्मों के द्वारा ही सम्भव है। सत् कर्म करते हुए अपने जीवन को पूर्णता तक पहुँचाना यहीं तो मानव जीवन का लक्ष्य है। श्रीअरविन्द एक द्रश्टा की तरह निरपेक्ष भाव में रहकर कर्म करने को प्रधानता देते है। उनके चिन्तन की मौलिकता कर्म सिद्धान्त की सीमाओं को स्पश्ट रूप से रेखांकित करती है। कर्म करना मानव का स्वभाव है। एक क्षण भी मनुश्य बिना कर्म के नहीं रह सकता। मनुश्य आज जहाँ कहीं भी है उसे आध्यात्मिक युग की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए तर्क-बुद्धि को निर्मल करना होगा। इसके अभाव में वह चिंतनषील पषु है। भगवत्कृपा से यह सम्भव है अतएव मानव को एक न एक दिन आध्यात्मिक कर्म करते हुए श्रेश्ठता को वरन् कर चिर आनन्द स्वरूप आनन्द की ओर अग्रसर होना ही है।

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