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वैदिक काल में जल प्रबंधन
Author(s) -
Rakesh Kumar Sharma,
Mahesh Kumar Sehgal
Publication year - 2016
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v8i0.81
Subject(s) - chemistry
प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वैदिक काल में जल प्रबंधन का कार्य वृहत् एवं अति उत्तम विधियों से किया जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जल की उत्पत्ति ‘नर’ (पुरूशत्रपरब्रहा्र) से हुई है। अतः उसका प्राचीन नाम ‘नार’ है। वह (नर) ‘नार’ में ही निवास करता है। अतः उस नर को नारायण कहते हंै। विश्णु पुराण के अनुसार संसार के सृश्टि-कर्ता ब्रह्मा का सबसे पहला नाम ‘नारायण’ है तथा दूसरे षब्दों में भगवान का जलमय रूप ही संसार की उत्पत्ति का कारण है। ‘जल ही जीवन है’ इसीलिए जल की बर्बादी को रोकना, समुचित जल प्रबंधन का कार्य पर्याप्त मात्रा में करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रस्तुत षोध पत्र में वैदिक काल में किये गये जल प्रबंधन के कार्यो की व्याख्या है। मनुश्य इस सर्व सिद्ध सूत्र को पूर्णतः भुला बैठा है कि जल नहीं तो जीव या जीवन कुछ नही होगा; जबकि भारत देष में आज भी यत्र-तत्र वैदिक काल की जल संरक्षण और संभरण कीे विभिन्न व्यवस्थायें देखी जा सकती हैं और उन्हीं आयामों को अल्प परिवर्तनों के साथ अपना कर वर्तमान पर्यावरणीय समस्याओं से मुक्ति पायी जा सकती है। वैदिक काल में जल प्रबंधन का कार्य प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों ही स्रोत से करते थे। अतः वैदिक काल के जल प्रबंधन की आचार संहिता एवं उसके क्रियान्वयन के तौर तरीकों की खोज का अध्ययन करना भी आवष्यक हो जाता है। वास्तव में किसी भी राश्ट्र की अर्थव्यवस्था की धुरी पेय जल एवं सिंचाई प्रबंधन होता है जो कि जल प्रबंधन की मूलभूत विशय वस्तु है, क्योकि इस पर ही कृशि, औद्योगिक एवं तकनीकि प्रगति निर्भर करती है।

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