
श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों में आदर्श नेतृत्व की अवधारणा का अध्ययन
Author(s) -
Krishna Jhare,
Megha Pal
Publication year - 2015
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v5i0.50
Subject(s) - political science
एक कुशल एवं आदर्श नेतृत्व की जरूरत विभिन्न क्षेत्रों में है। आज समय की मांग आंदोलनकारी नेताओं की नहीं, बल्कि ऐसे लोकशिक्षकों के नेतृत्व की है जो जनमानस में जागरण का आलोक उत्पन्न करने का अनवरत् प्रयत्न करने में अथक रूप से लगे रहें। आक्रोश में तोड़-फोड़ हो सकती है व आंदोलन व आवेश विक्षोभ पैदा करते हैं। ऐसे में सृजन संभव नहीं। सृजन के लिए सघन अध्यवसाय चाहिए। सर्वसाधारण के लिए विकास-उत्थान के साधन जुटाना कोई आसान कार्य नहीं हैं, फिर पतन के गर्त में द्रुतगति से गिरने वाले जनमानस को उलट देना तो और भी कठिन है। इस दुष्कर कार्य के लिये तो कोई अत्यंत प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व ही चाहिये। आचार्य श्रीराम शर्मा उन्हीं में से एक हैं। वे स्वयं तो एक आदर्श नेता बनकर जिए, साथ ही उन्होंने अनेकों में इस क्षमता को जाग्रत भी किया। प्रज्ञापरिवार की संरचना, युग साहित्य की सर्जना तथा विश्वविद्यालय स्तर की प्रशिक्षण क्षमता का परिचय देने वाले, आचार्य श्रीराम शर्मा ने कोटि-कोटि मनुष्यों को पे्ररणा, प्रकाश, अभ्युदय, ज्ञान व विज्ञान से भरपूर बनाया है। इतना ही नहीं, दलदल में फँसे हुओं को उबारा और इस योग्य बनाया कि वे अन्यान्यों को भी सहारा दे सकें। ऐसे नेतृत्वकर्ता ने नेतृत्व के स्वरूप को उसी कौशल के साथ स्पष्ट किया है। नेतृत्व के आधाररूप में वे कुछ ऐसे तŸवों को प्राथमिकता देते हैं, जिनके माध्यम से समस्त समाज का नवोन्मेष संभव हो सके जैसे-समय की मांग (के प्रति समझ), समर्थ समाधान तथा नये मूल्यों की स्थापना। इन मूल्यों की प्राप्ति हेतु आचार्य श्रीराम शर्मा ने प्रमुख सोपान बताए हैं-विवेकशीलता, प्रामाणिकता, कत्र्तव्यपरायणता एवं साहसिकता। इन आयामों के माध्यम से आचार्य जी के विचारों में वर्तमान समय के लिए एक आदर्श नेतृत्व की अवधारणा सामने आती है।