
वैदिक यज्ञीय उपकरण: प्रतीकात्मक दृष्टि
Author(s) -
Sanjeev Sharma,
Neetu Saxena
Publication year - 2019
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v3i0.29
Subject(s) - computer science
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म - यज्ञ एक सामान्य कर्म नहीं प्रत्युत सब कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। यज्ञ कर्मकाण्ड मात्रा नहीं, प्रत्युत जगत् प्रप/ हेतु प्रजापति द्वारा सम्पादित गूढ़ सृष्टि रहस्य का द्योतक है। यही ब्रह्माण्ड का केन्द्र बिन्दु एवं उद्भवस्थल है। निश्चयेन यज्ञ की सभी विधियाँ अथवा कृत्य एवं उनमें प्रयुक्त उपकरण, पात्रादि सभी लौकिक जगत् की वस्तुएँ न होकर प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों के प्रतीक हैं, जो ब्राह्मण साहित्य में प्रतिपादित यज्ञों में प्रयुक्त उपकरणो की प्रतीकात्मक व्याख्या से स्पष्ट है, उदाहरणार्थ - जल, अनस्, कृष्णाजिन, जुहू, उपभृत, सु्रवा, यूप, उलूखल-मुसल, शूर्प, अग्निहोत्राहवणी, वेदी, बर्ही इत्यादि। यज्ञ की इसी प्रतीकात्मकता के कारण दर्शपौर्णमास को भी तैत्तिरीय संहिता में देवरथ कहा गया है - एष वै देवरथो यद्दर्शपूर्णमासौ। अतः यज्ञ प्रकृति, सृष्टि-प्रक्रिया और आत्मयाग का प्रतीक है। कालान्तर में कर्मकाण्ड के प्रभाव के कारण इसका सूक्ष्म रूप तिरोहित हो गया और स्थूलरूप अवशिष्ट रहा। यज्ञ-प्रक्रिया वैदिक दर्शन को समझने, शाश्वत सत्य को प्राप्त करने और परमात्मा को प्राप्त करने का साधन है। वैदिक ऋषियों ने जिस परमसत्य का दर्शन किया उसी को हमने अपने जीवन में उतारना है और उसी के माध्यम से अपने समाज का नव निर्माण करना है। प्रस्तुत शोध-पत्र के माध्यम से यज्ञ के बृहद आयाम को धरण करते हुए केवल प्रतीकात्मक दृष्टि से अध्ययन करने का प्रयास किया है। संसार के सभी धर्मों में यज्ञ किसी न किसी रूप में सदैव प्रचलित रहा है और रहेगा। यज्ञ ही विविध-विधाओं का मूलाधर है।