
मानवतावादी जीवनदृष्टि: आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
Author(s) -
Krishna Jhare
Publication year - 2019
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v2i0.26
Subject(s) - political science
मानवतावादी जीवनदृष्टि में व्यष्टिगत् और समष्टिगत जीवन विकास के आदर्श निहित हैं। यह मनुष्य जीवन को इस धरती पर अति विशिष्ट जीवन के रूप में स्वीकारती है एवं मानव, प्रकृति और परमात्मा के बीच साम´्जस्य एवं पारस्परिक विकास के आदर्श प्रस्तुत करती है। सभी मानवतावादी विचारधाराओं एवं सिद्धान्तों में इसी जीवनदृष्टि की अभिव्यक्ति हुई है। इस धरा पर मनुष्य जीवन के साथ ही मनुष्यता रूपी आदर्श भी जन्मा है। मानवतावादी जीवनदृष्टि इसी आदर्श को जीवन में साकार बनाने में प्रयत्नशील रहती है। मनुष्य जीवन में अपने विकास के साथ-साथ जिस तरह विचारों और भावनाओं मंे एकरूपता, साम´्जस्य का व्यापक स्वरूप प्रकट होता गया वही मानवतावादी जीवनदृष्टि के विकास का संवाहक रहा है। इस जीवनदृष्टि का सैद्धान्तिक व व्यावहारिक क्षेत्र अत्यन्त व्यापक रहा है। मानवीय जीवन के कई ऐसे अनिवार्य पक्ष है जो मानवतावादी जीवनदृष्टि के स्वरूप का सृजन और विकास करते रहे हैं। नैतिकता, धार्मिकता, दार्शनिकता, सामाजिकता, आध्यात्मिकता आदि जीवन के ऐसे प्रमुख अंग हैं, जिनके अन्तर्गत मानवता के विकास एवं स्वरूप निर्धारण करने वाले सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता रहा है। अपनी भिन्न-भिन्न दृष्टि और आदर्शों के बावजूद भी पूर्वी और पाश्चात्त्य चिन्तन में प्रमुखतया नैतिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि पर आधारित ऐसे कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है, जिन्हें प्रकारान्तर से मानवतावादी सिद्धान्त के रूप में समझा गया है। इसके साथ ही ऐसे कई विचारक भी हुये हैं, जिन्होंने इस जीवनदृष्टि के आधार पर मानवता के मूल्य को केन्द्र में रखकर अपने मानवतावादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। मनुष्य जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मूल्यों की प्रतिष्ठा का आधार मानवतावादी जीवनदृष्टि ही है। इसलिए इसका महत्त्व और प्रासंगिकता जीवन के समानान्तर सदैव मौजूद है। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में तो इसकी सर्वोपरि आवश्यकता है। क्योंकि इक्कीसवीं सदीं के मानव जीवन में हजारों तरह के विघटन और समस्याएँ हैं, परन्तु सबसे बड़ा संकट मानव जीवन के अस्तित्व का है और इसका एक मात्र समाधान मानवतावादी जीवनदृष्टि में है।