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कतिपय राष्ट्रव्यापी समस्याओं के समाधान में वैदिक धर्म की चिन्तन दृष्टि
Author(s) -
Shikha Gupta,
Reena Bajpayee
Publication year - 2019
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v1i.9
Subject(s) - political science
संवेदना को परिष्कृत करने वाली विधा का नाम धर्म है। वैदिक साहित्य के अनुसार मनुष्य जीवन को सफल तथा समाज को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाने की जो सर्वोच्च आचार संहिता है उसे धर्म के नाम से जाना जाता है। धर्मवेत्ता वह है जो सर्वश्रेष्ठ मानवीय गुणों से सुसंपन्न है तथा समस्त मानव जाति को एक परमात्मा की संतान मानता है। जो तत्व प्राणियों द्वारा धारण किया जाता है तथा इसके द्वारा वह प्राणियों का पालन-पोषण करता हुआ उन्हें सुख-शांति से आप्यायित करता है व अवलंबन देता है उसे धर्म कहते हैं। इस प्रकार सारी विश्व मानवता के लिए धर्म एक ही हुआ, जिसके मार्गदर्शन, संरक्षण में जिसकी छाया तले सभी प्रकार की विचारधारायें समान रूप से पोषण पाती रहें, पारस्परिक कोई विग्रह न हो, वह धर्म शाश्वत है व एक ही है। देवसंस्कृति इस संबंध में हमारा मार्गदर्शन आज की साम्प्रदायिक विद्वेष भरी परिस्थितियों में समुचित रीति-नीति से करती हुई कहती है कि वही धर्म कहलाने योग्य है जो सहिष्णु हो, जिसकी मर्यादा-अनुशासन का अवलम्बन सब लें, जो नीतिमत्ता पर आधारित हो तथा जो सबको समान संरक्षण प्रदान करती हो। परंतु आज धर्म का यह वास्तविक स्वरूप विलुप्त हो गया है, धर्म मात्र कर्मकाण्ड बनकर रह गया है। धर्म के नाम पर सर्वत्र अंधविश्वास फैला हुआ है। धर्म के वास्तविक स्वरूप से दूर होने के कारण आज समाज में अनेक समस्याएंँ उत्पन्न हो गयी हैं। धार्मिक कट्टरता के कारण साम्प्रदायिकता ने जन्म लिया है। इसके अतिरिक्त जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसी समस्याएँ समाज को विकृत करती चली जा रही हैं। आतंकवाद का दंश तो भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व झेलने के लिए विवश है। इन समस्याओं के समाधान में वैदिक धर्म की महती भूमिका है। यदि मानव मात्र धर्म के वास्तविक स्वरूप (वैदिक धर्म) को अपने जीवन में अंगीकार कर ले तो उपरोक्त समस्याओं से निजात पा सकना संभव है। वैदिक ग्रंथांें में धार्मिक सद्भाव एवं धार्मिक सामंजस्य का उल्लेख प्राप्त होता है। धार्मिक सद्भाव का तात्पर्य है अन्य धर्म सम्प्रदायांे को भी अपने धर्म के समान आदर व प्रेम की भावना को प्रश्रय देना। इस भावना के अवलंबन में सम्प्रदायवाद की समस्या का समाधान निहित है। धार्मिक सामंजस्य का तात्पर्य है व्यक्ति व व्यक्ति के मध्य संकीर्ण, स्वार्थपरक मनोवृत्तियों व मनोभावों के स्थान पर ’’आत्मवत् सर्वभूतेषु’’ व ’’वसुधैव क टुम्वकम’्’ की भावना का विकास अर्थात् जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपने समान और संपूर्ण वसुधा को अपने परिवार के समान समझेगा तो समस्त प्रकार के विद्वेष स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे परिणामतः जातिवाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद जैसी समस्याओं का निर्मूलन संभव हो सकेगा। इस प्रकार वैदिक धर्म सामाजिक समस्याओं क े समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

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