
आयुर्वेदिक पंचकर्म एवं यौगिक षट्कर्म की तुलनात्मक समीक्षा
Author(s) -
Sunil Kumar,
Vinod Upadhyay
Publication year - 2012
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v1i.6
Subject(s) - chemistry
प्राचीन भारतीय आयुर्विज्ञान जहाॅँ जीवन में स्वास्थ्य का समावेश करने में सहयोगी सिद्ध होता है वहीं योग जीवन में स्वास्थ्य एवं सौंदर्य लाने की अद्वितीय कला है। इन दोनांे के पास बिल्कुल अलग अवधारणाएँ है। ये विकृतियों या व्याधियों का दमननहीं बल्कि उनका शमन करते हैं, जिससे उनके पुनः आगमन की संभावना भी समाप्त हो जाती है। इसलिए इनकी विभिन्न क्रियाओं को उपचार एवं शारीरिक विकास हेतु तेजी से प्रयोग किया जा रहा है। पंचकर्म एवं षट्कर्म जो क्रमशः आयुर्वेद एवंयोग के अंग हैं, दोषों को शरीर से निरहरण करते हुए शरीर की शुद्धि एवं मानसिक संतुलन में सहायक हंै। इन दोनों का उद्देश्य शोधन द्वारा त्रिदोषों में साम्यावस्था स्थापित करना होता है। षट्कर्म का पंचकर्म से सैद्धान्तिक मेल होने के कारणउचित उपयोग हेतु इनके मध्य व्याप्त समानताओं व विषमताओं से परिचित होना आवश्यक है। इसी उद्देश्य से इस शोध पत्र में मौलिक सिद्धान्तों, तथ्यों व शोध परिणामों के आधार पर पंचकर्म व षट्कर्म की तुलनात्मक समीक्षा की है, जिसकेपरिणामस्वरूप इनका उचित प्रयोग किया जा सके। अतः इस शोध पत्र में यह बताने का प्रयास किया है कि इनके मध्य कुछ सैद्धान्तिक समानतायें विद्यमान हैं क्योंकि ये दोनों कर्म त्रिदोषों का निरहरण करके साम्यता स्थापित करते हैं। पंचकर्म मेंऔषधि, मंत्र व यंत्र का प्रयोग किया जाता है जबकि षट्कर्म में जल व नमक का ही प्रयोग होने के कारण इनके मध्य क्रियात्मक विषमताओं का भी अस्तित्व है, जो कि भविष्य में होने वाले शोध व वर्तमान में जिज्ञासु जन-मानस को इनकेमूलभूत सिद्धान्तों से परिचित कराकर उन्हें अग्रिम मार्ग प्रशस्त करने में सहायक बने।