
भारतीय दर्शनेषु मोक्ष प्रक्रिया
Author(s) -
Swati Kapil
Publication year - 2019
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v13i.110
Subject(s) - computer science
सारांश मोक्ष मानव जीवन का परम लक्ष्य है, इसीलिये मानव के आदि संविधान वेद से लेकर आज तक सभी धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में मोक्ष का चिन्तन प्राप्त होता है। मोक्ष को मुक्ति, कैवल्य, निःश्रोयस, निर्वाण, अमृत और अपवर्ग आदि नामों से जाना जाता है। विश्व मंे दो प्रकार की प्रवृत्ति सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है प्रथम दुःखों को दरू करने की तथा द्वितीय सुखो को प्राप्त करने प्रवृत्ति। दुःख निवृत्ति भी दो प्रकार की है- प्रथम वर्तमान दुःख की निवृत्ति तथा द्वितीय भावी दुःख की निवृत्ति। इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियाँ ही मोक्ष की विचारधारा की जनक कहलाती है। यह धारणा कि हमें अतिशय सुख प्राप्त हो और दुःखो की निवृत्ति हो वेदों के कारण से ही प्राप्त होती है। भारतीय दर्शन में इस अविद्याकृत प्रपंच से मुक्ति प्राप्त करना ही मोक्ष है। वस्तुतः जीवन में त्याग प्रतिष्ठा का नाम ही मोक्ष है। वासना, तृष्णा, अहंता रूपी बन्धनों से मुक्ति प्राप्त कर आत्म तत्व की और उन्मुख होना ही मोक्ष है। मन पर अधिकार प्राप्त कर लिया जाये और अहंकार तथा इच्छाओं को जड़ कर दिया जाये तो स्थायी परम आनन्द की अनुभूति सम्भव है।