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श्रीमद्भागवत में योग के विविध आयाम
Author(s) -
rashmi Sharma
Publication year - 2017
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v10i0.94
Subject(s) - medicine
योग ब्रह्मा द्वारा निर्दिष्ट एक षाष्वत विज्ञान है, साधना पद्धति है। जो मनुष्य को सभी प्रकार के आवरणों एवं विक्षेपों से सदा के लिये मुक्त करता हुआ ऐसा विषुद्ध अंतःकरण वाला बना देता है कि परमात्मा से उसका अभिन्न सम्बन्ध स्वतः ही स्थापित हो जाता है। पौराणिक साहित्य जनसाधारण के समक्ष बहुत ही सहज ढ़ग से ऋषियों द्वारा प्रतिपादित योग के इसी उद्देष्य को प्रस्तुत करता है। श्रीमद्भागवत महापुराण जहाँ एक ओर कथाओं के माध्यम से जनसाधारण को परमात्मा की भक्ति की ओर आकर्षित करता है, वहीं दूसरी ओर योग के गूढ़तम रहस्यों का प्रतिपादन करते हुए उसके विविध आयामों का विवेचन करता है। भागवत में ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग व अष्टांगयोग के माध्यम से कृष्ण तत्व का ही वर्णन प्राप्त होता हैै। श्रीमद्भागवत ज्ञानयोग के अन्तर्गत समस्त वृŸिायों से परे निर्गुण ब्रह्म तत्व का विवेचन हुआ है। श्रीमद्भागवत की एक विषेषता यह है कि इसमें भक्तिसंगत ज्ञान का वर्णन है। कर्मयोग के अन्तर्गत कर्म को फलभोग का हेतु माना गया है। यद्यपि कर्ता भगवान श्रीकृष्ण ही हैं परन्तु मायारूपी अविद्या के कारण ही जीवों को कर्तापन की भ्रांति होती है। इसीलिए इसमें अपने समस्त कर्मों को भक्ति भाव से भगवान श्रीकृष्ण में समर्पित करने की बात कही गयी है। श्रीमद्भागवत में वर्णित अष्टांगयोग उपनिषदों और पातंजल योगसूत्र के अष्टांगयोग का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें वर्णित अष्टांगयोग में भी भक्ति का सम्पुट है। इस तरह यह राजयोग और भक्तियोग का अनूठा समन्वय प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत षोधपत्र का उद्देष्य जनसाधारण को श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित योग की विविध धाराओं से अवगत कराना तथा इस सहज मार्ग की ओर जीवन की दिषा धारा को प्रेरित कराना है।

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