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श्रीगंगा का प्राचीन साहित्यिक एवं धार्मिक महत्त्व
Author(s) -
Devendra Kumar,
Ravindra Kumar
Publication year - 2017
Publication title -
dev sanskriti : interdisciplinary international journal (online)/dev sanskriti : interdisciplinary international journal
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2582-4589
pISSN - 2279-0578
DOI - 10.36018/dsiij.v10i0.92
Subject(s) - mathematics
प्रस्तुत अनुसन्धान का उद्देष्य गंगा की महिमा के विशय में ज्ञान प्राप्त करने और उसकी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृश्ठभूमि को समझने का प्रयास है। भारतीय जनमानस के लिए गंगा भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता की प्रतीक रही है। अपने स्वरूप व प्रवाह में निरन्तर बदलाव लाने पर भी अपने मूल रुप में तो वही गंगा ने युगों-युगों तक एक समूची सभ्यता को न केवल सिंचित किया है बल्कि उसका भरण-पोशण भी किया है। गंगा षाष्वता का प्रतीक है तथा कला, पौराणिक कथाएँ एवं साहित्य सभी उसका गुणगाण करते हंै। गंगा परम्परा, पुराण, कला, संस्कृति एवं इतिहास से जुड़ी हुई है। उसका उल्लेख हमें प्राचीन भारतीय वाड.मय में स्थान-स्थान पर मनन करने के लिए मिलता है। वैदिक काल से लेकर पूर्व मध्यकाल तक गंगा विभिन्न स्वरुपों में समाई हुई है। वैदिक काल में गंगा का धार्मिक व गंगाजल के रुप में चिकित्सा की दृश्टि से महत्त्व रहा है। इसके पश्चात महाभारत, रामायण काल में गंगा को मोक्ष प्रदात्री के रुप में मान्यता मिली। मौर्य काल में गंगा को व्यापारिक दृश्टि से महत्त्वपूर्ण समझा गया। इसके पश्चात पौराणिक काल के अन्र्तगत गंगा का दैवीय स्वरुप देखने को मिलता है। समय के साथ धीरे-धीरे सभ्यता एवं संस्कृति में बदलाव आता गया लेकिन गंगा जी की महिमा का गुणगान, यषोगान सम्पूर्ण संसार में वैदिक काल से ही चला आ रहा है। इसलिए गंगा जी का वैभव असीम है।

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