
विज्ञान के मिथ्याकरण: कार्ल पॉपर के दृष्टिकोण से समाज-विज्ञान शोध
Author(s) -
R. Ghosh
Publication year - 2019
Publication title -
international journal of research - granthaalayah
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2394-3629
pISSN - 2350-0530
DOI - 10.29121/granthaalayah.v7.i6.2019.751
Subject(s) - computer science
सर कार्ल पॉपर के अनुसार वैज्ञानिक सिद्धांतों में पुनर्विवेचना की आवश्यकता है, जिससे वे सत्य के निकट पहुंचे । जहाँ छद्मविज्ञान अपने आप को स्वयं-सिद्ध मानता है, वहीं विज्ञान स्वयं का कई कसौटियों में परीक्षण करता है। सत्य तक पहुँचने हेतु तर्क एवं गणित की सहायता आवश्यक होती है । अवैज्ञानिक विधि केवल प्रत्यक्षीकरण पर आधारित होती है । सर कार्ल पॉपर ने पहली बार थॉमस कुह्न, सिगमंड फ़्रोएड, कार्ल मार्क्स जैसे तमाम विद्वानों के सिद्धांतो पर प्रश्न उठाया था । इस आलेख में समाज-विज्ञान के क्षेत्र में किए गए शोधकार्य पर सर पॉपर के मिथ्याकरण सिद्धांत के महत्व को सूचित किया गया है ।