z-logo
open-access-imgOpen Access
ART, ARTISTS AND CONDOLENCES
Author(s) -
Sunita Gupta
Publication year - 2019
Publication title -
international journal of research - granthaalayah
Language(s) - Hindi
Resource type - Journals
eISSN - 2394-3629
pISSN - 2350-0530
DOI - 10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.3753
Subject(s) - consciousness , beauty , sociality , feeling , aesthetics , psychology , intellect , social consciousness , sensation , philosophy , social psychology , epistemology , cognitive psychology , ecology , biology
English: Beauty, love, sensation, feeling and consciousness are social rites. With the continuous development of the developing living beings, they also evolved, rising above the category of human, monkey and forest man and became great human beings. His mind, mind, aesthetic consciousness and love continued to develop on the strength of his intellect and is still happening today. Man has always been a necessity of society and due to the desire for sociality, he has an attitude of love and love. Charles Darwin has accepted aesthetic consciousness even among non-human beings, but aesthetic consciousness is limited to sexual sensation only. Man has given aesthetic consciousness control from senses due to cultural and sociality. In terms of ray sensation, there are two types of organisms - one that attracts sunlight such as kitesurf, etc. and those who find the sunlight repellent like owl, chali etc. This difference is due to the anatomy of the animal and different types of senses. On the basis of this variation, other dimensions and aspects of the aesthetic consciousness of beings depend. Due to the characteristic of eye-brain relationship in humans, there is a difference in thinking towards beauty. The more aware, active and capable the mind is, its beauty-consciousness is sharp and sharp. Mahakavi Bihari has considered it a distinction- Hindi: सौन्दर्य, प्रेम, संवेदना, अनुभूति और चेतना आदि सामाजिक संस्कार है। विकासशील चैतन्य प्राणी के निरन्तर विकसित हाने से इनका भी विकास हुआ मानव,वानर और वनमनुष्य की श्रेणी से ऊपर उठकर महामानव बन गया। उसका मन, मस्तिष्क, सौन्दर्य चेतना और प्रेम निरन्तर उसकी बुद्धि के बल पर विकसित हुए और आज भी हो रहे हैं। मनुष्य को समाज की सदैव आवश्यकता रही और सामाजिकता की आकांक्षा के कारण ही उसमें सौन्दर्य प्रिय और प्रेम की वृत्ति होती है। चार्ल्स डार्विन ने मानवेतर प्राणियों में भी सौन्दर्य चेतना को स्वीकार किया है लेकिन उनमें सौन्दर्य चेतना केवल यौन-संवेदना तक सीमित है। मनुष्य ने सांस्कृतिकता एवं सामाजिकता के कारण सौन्दर्य चेतना को इन्द्रियों से नियन्त्रित धरातल दिया है। किरण संवेदना की दृष्टि से जीव दो प्रकार के होते हैं-एक वे जिन्हें सूर्य का प्रकाश आकर्षित करता है जैसे पतंगा चातक आदि दूसरे वे जिन्हें सूर्य का प्रकाश विकर्षक लगता है जैसे उल्लू, चाली आदि। यह भिन्नता प्राणी की शरीर रचना और इन्द्रियों के भिन्न प्रकार से निर्मित के कारण होती है। इसी भिन्नता के आधार पर प्राणियों की सौन्दर्य चेतना के अन्य आयाम और पक्ष निर्भर करते हैं। मनुष्य में नेत्र-मस्तिष्क सम्बन्ध की विशेषता के कारण सौन्दर्य के प्रति सोच में अन्तर आ जाता है। मस्तिष्क सौन्दर्य के प्रति जितना अधिक सजग, सक्रिय एवं समर्थ होगा, उसकी सौन्दर्य-चेतना उतनी ही तेज एवं प्रखर होती है। महाकवि बिहारी ने इसे भेद माना है-

The content you want is available to Zendy users.

Already have an account? Click here to sign in.
Having issues? You can contact us here